"कैसा लगता है जब कोई आप पर दोषारोपण करता है सामानà¥à¤¯à¤¤: जब कोई आपको दोष देता है आप बोà¤à¤¿à¤² और खिनà¥à¤¨ महसूस करते है या दà¥à¤–ी हो जाते है । आप आहत होते है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि आप आरोपों का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤°à¥‹à¤§ करते है। बाहरी तौर पर आप विरोध न à¤à¥€ करे परंतॠअनà¥à¤¦à¤° कहीं जब आप पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤°à¥‹à¤§ करते है तो आपको पीड़ा होती है। à¤à¤• आरोप आपसे आपके कà¥à¤› बà¥à¤°à¥‡ करà¥à¤® ले लेता है। धैरà¥à¤¯ और विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ ही आरोपों से निपटने का रासà¥à¤¤à¤¾ है। आप चाहे कोई à¤à¥€ काम करे, कोई न कोई à¤à¤¸à¤¾ होगा जो आपकी गलती निकालेगा। जोश और उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ खोये बिना अपना काम करते रहिà¤à¥¤ à¤à¤• पà¥à¤°à¤¬à¥à¤¦à¥à¤§ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ अपने सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° अचà¥à¤›à¤¾ करà¥à¤® करता रहता है। उसका रवैया किसी की पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा अथवा आलोचना से पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ नही होता| ""निदंक नियरे राखिये आà¤à¤—न कà¥à¤Ÿà¤¿ छबाय, बिनॠपानी बिनॠसाबà¥à¤¨à¤¾ निरà¥à¤®à¤² करे सà¥à¤à¤¾à¤¯à¥¤"" à¤à¤¾à¤°à¤¤ के महान स़ंत कबीरदास ने कहा है कि जो तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ आलोचना करते हैं उनà¥à¤¹à¥‡ अपने निकट रखो यह तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ घर, तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ मन को सà¥à¤µà¤šà¥à¤› रखेगा -साबà¥à¤¨ और पानी की आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ नहीं पड़ेगी। यदि तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ आसपास सà¤à¥€ तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा करते रहे तो वे तà¥à¤¨à¥à¤¹à¥‡ तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ कमियाठनहीं दिखायेंगे। आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ है कि तà¥à¤® रचनातà¥à¤®à¤• समालोचना दे सको या सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° कर सको।"
AAzadi
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