" इस संचयन में बहुत सारी भावनाएं सम्मिलित है जैसे अप्रसनता, अनुराग, संताप (पीड़ा ), दायित्व आदि |जिसके माध्यम से आप अपने भावनाओं को वक़्त कर सकते है| कहते है - "" समस्तास्तव देवि भेदाः, स्त्रियाः समस्ताः सकला जगत्सु। त्वयैकया पूरितमम्बयैतत्, का ते स्तुतिः स्तव्यपरापरोक्तिः॥ - दुर्गा सप्तशती "" अर्थात्:- हे देवी! समस्त संसार की सब विद्याएँ तुम्हीं से निकली है तथा सब स्त्रियाँ तुम्हारा ही स्वरूप है। समस्त विश्व एक तुमसे ही पूरित है। नारी सम्मान एवं उसकी सुरक्षा की सौगंध लें एवं नारी सम्मान का संकल्प लें। हम जानते हैं कि नारी के बिना सृष्टि सृजन की हम कल्पना भी नहीं कर सकते, अपने जीवन को दांव पर लगाकर वंश चलाने वाली इस नारी को यदि हम भयमुक्त वातावरण देने और आत्मसम्मान के साथ खड़ा करने में सहयोगी बन सके, तो यह समाज के लिए गौरव की बात होगी।"
AAzadi
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