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इबादत क तामीर

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"ख़ुद को जानने में मुझे डर लगता हैं,बहुत गुनाह किये ता-उम्र, अब तो यह गुनाहो की दलदल भी,अपना घर लगता हैं। बलजिंदर सिंह ""जिंद"" हमारे मुहब्बत की मासूमियत उस नोटबुक के आखिरी पन्ने तक ही क़ामिल थी, जिस दिन वो नावेल के पन्नों के बीच आई,कमबख़्त बाज़ारू हो गई । उत्सव ""काव्य"" इबादत की तामीर अब हो गई है, जिंदगी क्या थी और क्या हो गई है। तजुर्बे ऐसे मिले, की हर वो पेज में, पढ़कर दुनियाँ खूबसूरत हो गई है। जमाल रज़ा मंसूरी मेरे मौला तेरी इबादत की तामीर बनाना चाहती हूँ ज़िंदगी का हर इक लम्हा तेरे नाम करना चाहती हूँ। ❤❤प्रवीणा कोई दौलत तो कोई दिल से अमीर होते है, हम तो घायल इबादत की तामीर से होते है। जयलाल कलेत"

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ISBN: 978-93-5452-307-6 | Language: Hindi | Pages: 255
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