"जब à¤à¥€ साहितà¥à¤¯ की बात हो और हमारी मातृà¤à¤¾à¤·à¤¾ पिछड़ जाठà¤à¤¸à¤¾ संà¤à¤µ नहीं। बेशक अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¤¼à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ ने अपनी धाक जमा ली है परंतॠअब हिनà¥à¤¦à¥€ का पà¥à¤¨à¤ƒà¤¶à¤¾à¤¸à¤¨ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ होने में जà¥à¤¼à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ देरी नहीं है और ना ही जà¥à¤¼à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ दूरी। हर रचनाकार अपने à¤à¤¾à¤µ गदà¥à¤¯ और पदà¥à¤¯ के माधà¥à¤¯à¤® से समाज को आईना दिखाने में सकà¥à¤·à¤® है। कई इतिहासकार à¤à¥€ कà¥à¤› à¤à¤¸à¥‡ कावà¥à¤¯ नज़à¥à¤®, गज़ल आदि लिख गठजो नवयà¥à¤— के कवि व कवयितà¥à¤°à¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सोच-विचार करने à¤à¥€ मà¥à¤¶à¥à¤•à¤¿à¤² हैं। कावà¥à¤¯ की विधाओं में अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ गढ़ना गागर में सागर जैसा होना चाहिठजो केवल à¤à¤• निरंतर व अथक पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ से ही संà¤à¤µ है। अथाह गहराइयों में डà¥à¤¬à¤•à¥€ लगाता निराश मन सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• रचनाà¤à¤ गढ़ता है। मैं नीना अमित à¤à¤¾, शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤® सिंह यादव जी का आà¤à¤¾à¤° वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ करती हूठजिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤à¥‡ साहितà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¨ पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤²à¥€ से जà¥à¤¡à¤¼à¤¨à¥‡ का अनà¥à¤à¤µ दिया à¤à¤µà¤‚ मेरे संपादकता के हà¥à¤¨à¤° को जगजाहिर किया। सà¤à¥€ रचनाकारों का सहृदय आà¤à¤¾à¤° जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हिनà¥à¤¦à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ को बढ़ावा देने में मेरा सहयोग किया। सà¤à¥€ के लिठहिनà¥à¤¦à¥€ का अपना महतà¥à¤µ है। किसी के लिठपà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ नà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ है, तो किसी के लिठहिनà¥à¤¦à¥€ संवैधानिक और अधिकारिक है, किसी के लिठहिनà¥à¤¦à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ समाज में बहू-बेटी सा महतà¥à¤µ रखती है, तो किसी के लिठहिनà¥à¤¦à¥€ अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¤¼à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ से उचà¥à¤šà¤¤à¤® सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ दरà¥à¤œ करती है। कà¥à¤› रचनाà¤à¤ बेशक लंबी है किंतॠयह रचनाकार की असीमित अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ करती है, कहीं गागर में सागर की à¤à¤¾à¤‚ति गहरी व अमूल रचनाà¤à¤ à¤à¥€ हैं जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पढ़कर मन तृपà¥à¤¤ हो सोचने पर मजबूर हो जाता है। साहितà¥à¤¯à¤¿à¤• आवरण साà¤à¤¾ कावà¥à¤¯ संकलन आपको साहितà¥à¤¯ की ओर ले जाता हà¥à¤† à¤à¤• अविशà¥à¤µà¤¸à¤¨à¥€à¤¯ मारà¥à¤— दरà¥à¤¶à¤¾à¤¤à¤¾ है। साहितà¥à¤¯ का आवरण लिठहिनà¥à¤¦à¥€ चारों ओर अपना पराकà¥à¤°à¤®, शौरà¥à¤¯, पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§à¤¿ व गà¥à¤£à¤—ान सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¥‡ लगी है। अनेकों मंच विदेशी à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं को पछाड़ते हà¥à¤ हिनà¥à¤¦à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ का महतà¥à¤µ बड़ी बारीकी से समà¤à¤¾à¤¨à¥‡ लगे हैं। महतà¥à¤µà¤¾à¤•à¤¾à¤‚कà¥à¤·à¥€ à¤à¤µà¤‚ नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤ªà¥à¤°à¤¿à¤¯ लोग हिनà¥à¤¦à¥€ की ओर रà¥à¤à¤¾à¤¨ करने लगे हैं। किसी विधा का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ ना रखते हà¥à¤ à¤à¥€ बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¶à¤‚सनीय सलीके से लोग हिनà¥à¤¦à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ को सीखने व लिखने का हà¥à¤¨à¤° लिठबैठे हैं जो दिन पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ अपने à¤à¤¾à¤µ अपने जज़à¥à¤¬à¤¾à¤¤ ही नहीं अपितॠसमाज, पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿, देश, मिटà¥à¤Ÿà¥€, सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€, शिकà¥à¤·à¤¾ इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ विषयों पर बखूबी कावà¥à¤¯ रचने लगे हैं। बहà¥à¤¤ से लोग आलेख निबंध गदà¥à¤¯ पदà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ लघॠकथा के माधà¥à¤¯à¤® से हिनà¥à¤¦à¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ को सरल, सहज व सरà¥à¤µà¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤® बनाते हैं। संकलनकरà¥à¤¤à¤¾ नीना अमित à¤à¤¾ तनà¥à¤œà¤¾ नारवारा"
Amodini Syaahi
₹350.00Quis autem vel eum iure reprehenderit qui in ea voluptate velit esse quam nihil molestiae consequatur, vel illum qui dolorem eum fugiat quo voluptas nulla pariatur erit qui in ea voluptate
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