पिटारा!! हाà¤,थोड़ा अलग सा नाम है पर इस किताब का नाम पिटारा' इसलिठरखा गया है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इस किताब में तरह-तरह की शायरियाठऔर कविताà¤à¤ है। कहीं न कहीं ये आप सब लोगों को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में रखकर लिखे गठहै, कà¤à¥€ न कà¤à¥€ आपके जीवन में à¤à¤¸à¤¾ पड़ाव आता है जब इस तरह की चीज़े आपके साथ à¤à¥€ होती है, चाहे वो फिर जनà¥à¤® देनी वाली माठहो या आपके पिता की ज़िमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ हो, फिर चाहे वो आपके दोसà¥à¤¤ का सà¥à¤– हो या दà¥à¤ƒà¤– हो या किसी को पà¥à¤¯à¤¾à¤° मिला हो या किसी को उसमें धोका मिला हो, और चाहे वो बड़े होने के बाद आपको बचपन की याद आना हो या फिर से बचà¥à¤šà¤¾ बनने का मन हो, ज़िमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का à¤à¥‹à¤œ हो या फिर कà¥à¤› न कà¥à¤› जो हमारे जीवन में होता रहता है। आशा करता हूठइस किताब को पड़ने के बाद आपको कोई न कोई वाकà¥à¤¯ à¤à¤¸à¤¾ लगे इस किताब में जिसको आप अपने आपसे जोड़ सके अगर à¤à¤¸à¤¾ हà¥à¤† तो मेरा लिखना सफल होगा।
Pitara
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